भोपाल
जिला पंचायत अध्यक्ष और महापौर के निर्वाचन के बाद भाजपा अब नगरपालिका, नगर परिषद अध्यक्षों और नगर निगम सभापति के निर्वाचन में जातीय समीकरण साधने की कोशिश में जुटी है। संगठन की कोशिश है कि एक ही जिले में सभी वर्गों के लोगों को राजनीतिक पद सौंपकर राजेनताओं के बीच जातीय संतुलन बनाया रखा जा सके। इसको लेकर आज से शुरू हो रहे नगरीय निकायों के प्रथम सम्मिलन में चुने जाने वाले पार्षद के लिए यह रणनीति अधिकांश जिलों में अपनाई जा सकती है। संगठन ने जिलों और निकायों के प्रभारी बनाए गए पार्टी पदाधिकारियों को जातीय संतुलन का ध्यान रखने के संकेत दिए हैं।
ऐसे समझें जातीय समीकरण का गणित
प्रदेश में नगरीय निकाय और त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव एक साथ हुए हैं और जिला व जनपद पंचायतों के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष पद पर निर्वाचन की प्रक्रिया निर्वाचित सदस्यों के आरक्षण और उपलब्धता के आधार पर पूरी कराई जा चुकी है। इसके साथ ही महापौर के निर्वाचन भी आरक्षण के आधार पर हो चुके हैं। अब नगरपालिका और नगर परिषद अध्यक्ष के जो चुनाव होने हैं, उसमें यह देखा जाएगा कि जिला पंचायत अध्यक्ष और महापौर किस जाति वर्ग से निर्वाचित हुए हैं। इसके बाद जो जाति वर्ग शेष बचता है उस वर्ग से निर्वाचित होकर सामने आए नेताओं को मौका दिया जाएगा। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि अगर नगर निगम में ओबीसी का महापौर और एसटी कोटे का जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ठाकुर जाति से निर्वाचित हुआ है वहां नगर निगम परिषद अध्यक्ष ब्राह्मण या कायस्थ हो, इसे ध्यान में रखकर कैंडिडेट सेट किए जा रहे हैं ताकि जातीय संतुलन बना रह सके। इसी तरह नगरपालिका अध्यक्ष के मामले में भी यही रणनीति होगी। अगर सामान्य वर्ग का अध्यक्ष बनेगा तो उपाध्यक्ष का चयन निर्वाचित हो चुके जिला पंचायत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की जाति से अलग तय किया जाएगा।