नैनीताल
नैनीताल में आपदा की स्थितियां यूं ही नहीं बन रही हैं। काफी हद तक मानवीय दखल इसके लिए जिम्मेदार है। मानकों को ताक पर रख बहुमंजिला भवनों का निर्माण हो रहा है। यहां आपको सीमेंट की छत के ऊपर हरे पेड़ नजर आयेंगे तो टिनशेड के भीतर आलीशान कमरे। शहर मे अवैध निर्माण कर हरे पेड़ों को काटने के साथ ही उन्हें भवन के भीतर चिना जा रहा है। नैनीताल में वन संरक्षण के लिए करीब 25 वर्ष पूर्व वृक्ष पातन समिति का गठन किया गया। जिसमें वन अधिनियम में शामिल नियमों के अतिरिक्त भी कई उपबंध और नियम शामिल किये गए। जिसके तहत शहर में हरे पेड़ों को काटने, पेड़ों की लापिंग तक के लिए अनुमति लेना अनिवार्य है। पातन समिति होने के बावजूद वन संरक्षण शहर में धड़ल्ले से हो रहे निर्माण कार्यो में खुलेआम बांज के हरे पेड़ों की बलि दी जा रही है।
अंग्रेज थे सजग, मगर वन विभाग सुस्त
शहर में हरे पेड़ों से घिरा वन क्षेत्र अंग्रेजों की देन है। अंग्रजों द्वारा लगाए गए बांज और सुरई के पेड़ आज भी पर्यावरण संतुलन को बनाये हुए है। इतिहासकार प्रो अजय रावत ने बताया कि 18वीं शताब्दी के अंत तक शहर बेहद कम वन क्षेत्र से घिरा था। जिसके बाद अंग्रेजों द्वारा किये गए पौधारोपण का ही परिणाम है कि आज भी शहर का अधिकांश क्षेत्र वन आच्छादित है।
मामूली चालान तक सीमित वन विभाग
लंबे समय से शहर के विभिन्न क्षेत्रों में दर्जनों हरे बांज के पेड़ों को भवनों में चिन दिया और विभागीय कर्मियों को इसकी भनक तक नहीं लगी। नियमानुसार हरे पेड़ से करीब सात फिट की दूरी तक निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए, मगर यहां तो कई भवनों में ही पेड़ों को चिन दिया गया है। हरे पेड़ों को काटने के मामले सामने आ चुके है, मगर विभाग की कार्रवाई महज चालानी कार्रवाई तक सीमित है।
हरा पेड़ काटने पर है मनाही
प्रो अजय रावत ने बताया कि हरे पेड़ों के संरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट से भी साफ निर्देश है। टीएनजी गौड़ा बर्मन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट के साफ निर्देश है कि समुद्रतल से एक हजार मीटर से अधिक ऊंचाई पर हरे पेड़ नहीं काटे जाते।