बीजिंग
अमेरिकी हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा के जबाव में चीन ने गुरुवार को कई मिसाइलें दागीं। इनमें से 5 मिसाइलें जापानी जल क्षेत्र में आकर गिरीं। जिसके बाद जापान ने चीनी राजदूत को तलब कर सख्त आपत्ति जताई। इस घटना के बाद जापान ने भी अपनी नौसेना को अलर्ट कर दिया है, वहीं उसके लड़ाकू विमान आसमान में गश्त लगा रहे हैं। चीन और जापान के बीच दुश्मनी कोई नहीं घटना नहीं है। ये दोनों देश पिछले 1500 साल से एक दूसरे के जानी दुश्मन रहे हैं। द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत में जापानी सेना ने तो चीन के तीन लाख लोगों का कत्लेआम कर दिया था। जापानी सैनिकों ने लगभग 80 हजार चीनी महिलाओं के साथ बलात्कार किया और बच्चों को भी मौत के घाट उतारने से नहीं हिचके। दावा किया जाता है कि जापानी सैनिक अपनी क्रूरता को दिखाने के लिए चीनी लोगों के मांस को पकाकर खा जाते थे। उनका सबसे खतरनाक हथियार तलवार थी, जिसका इस्तेमाल वह सार्वजनिक मौत की सजा देने के लिए करते थे। यही कारण है कि आज भी चीन और जापान के लोगों के बीच एक दूसरे को लेकर भावना अच्छी नहीं है।
प्रथम चीन-जापान युद्ध
चीन और जापान के बीच पहला युद्ध 1894-95 में कोरिया पर अधिकार को लेकर लड़ा गया था। इस युद्ध में चीनी सेना की जबरदस्त हार हुई। इस कारण कोरिया, मंचूरिया और ताइवान पर जापान का कब्जा हो गया। कहा जाता है कि चीन में चिंग राजवंश के खिलाफ क्रांति इसी युद्ध के कारण हुई थी। चीनी लोगों का मानना था कि जापान ने अपने आधुनिकीकरण के कारण इस युद्ध को जीता था। जबकि, उनका देश राजशाही के कारण काफी पीछे था। इस युद्ध के खत्म होने पर 17 अप्रैल 1895 में चीन और जापान के बीच शिमोनोस्की की संधि हुई। इसमें चीन ने कोरिया को एक अलग स्वतंत्र राज्य के रूप में स्वीकार किया और कहा कि वह इस क्षेत्र पर अपना अधिकार नहीं करेगा। वहीं, चीन ने जापान को फारमोसा, पेस्काडोर्स और लियाओतुंग प्रायद्वीप दे दिए। चीन ने हर्जाने के तौर पर जापान को 200,000,000 सिक्के भी दिए थे।
कैसे हुई जापान और चीन में दुश्मनी की शुरुआत
साल 1875 में जापान का एक व्यापारिक जहाज कोरिया पहुंचा। लेकिन, चीन की शह पर कोरिया ने इस जहाज पर गोलीबारी शुरू कर दी। इस कारण जापान में चीन और कोरिया को सबक सिखाने की मांग होने लगी। लेकिन, जापान ने संयम से काम लिया और एक प्रतिनिधिमंडल को कोरिया भेजा। 1876 में जापान और कोरिया के बीच सबकुछ सामान्य हो गया और व्यापार भी सही से चलने लगा। इस कारण जापान ने भी कोरिया के स्वतंत्र सत्ता को मान्यता दे दी। 1891 में रूस ने फ्रांस से कर्ज लेकर 3500 मील लंबी ट्रांस साइबेरियन रेलवे बनाने का ऐलान कर दिया। रूस दक्षिण कोरिया को अपना सैन्य अड्डा बनाना चाहता था, जिसके कारण 1894 में कोरिया में विद्रोह हो गया। जब कोरियाई सेना इस विद्रोह को दबा नहीं पाई तो उसने चीन से सैन्य सहायता मांगी। चीनी सैनिक जैसे ही कोरिया पहुंचे तो जापान भड़क गया और उसने इसे समझौते का उल्लंघन बताया। इसी कारण जापान ने भी 7000 सैनिकों की फौज भेज दी और दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो गया।
जापान ने नानजिंग में 3 लाख चीनियों का किया नरसंहार
1931 में जापानी फौज ने चीन के मंचूरिया पर हमला किया। यह हमला जापानी नियंत्रण वाले एक रेलवे स्टेशन के पास हुए विस्फोट के जवाब में किया गया था। इस युद्ध में चीन का जबरदस्त हार हुई और जापान ने मंचूरिया का काफी बड़ा इलाका जीत लिया। इसके बाद जापान की महत्वकांक्षा बढ़ गई और उसने दिसंबर 1937 में तत्कालीन चीन की राजधानी नानजिंग शहर पर आक्रमण कर दिया। जापानी फौज ने चीन के नानजिंग में जो कत्लेआम मचाया था, उसे दुनिया आज तक भूल नहीं पाई है। इस दौरान लोगों को मारा गया, महिलाओं का बलात्कार किया गया, घरों को लूटा गया। यह कत्लेआम मार्च 1938 तक चलता रहा। एक अनुमान के मुताबिक इन चार महीनों में जापानी फौज ने नानजिंग में लगभग तीन लाख लोगों को मार डाला था। मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे।
द्वितीय चीन-जापान युद्ध
द्वितीय चीन-जापान युद्ध चीन तथा जापान के बीच 1937-45 के बीच लड़ा गया था। जब 1945 में अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिरा दिए तब जाकर यह युद्ध खत्म हुआ। इसका परिणाम यह हुआ कि जापान ने घुटने टेक दिए। इस कारण नानजिंग और ताइवान चीन के अधिकार में चले गए। हालांकि, इस युद्ध के दौरान जापान ने चीन को ऐसे जख्म दिए, जिसे वह आज तक नहीं भूल पाया है।