नई दिल्ली
विलियम पेन (William Penn)। लग्जरी पेन बिजनस का जाना पहचाना नाम। निखिल रंजन (Nikhil Ranjan) की इस भारतीय कंपनी ने अब नई इबारत लिखी है। कंपनी ने 110 साल पुरानी आइकॉनिक अमेरिकी फर्म शीफर (Sheaffer) को खरीद लिया है। इस सौदे की रकम का खुलासा नहीं हुआ है। शीफर लग्जरी कलम बनने में इस्तेमाल होने वाली चीजों की मैन्यूफैक्चरिंग करती है। इसे सौदे से भारतीय कंपनी एक खास तरह के कुनबे में शामिल हो गई है। यह उन भारतीय कंपनियों का है जिन्होंने किसी बड़े विदेशी ब्रांड को खरीदा है।
शीफर का कारोबार अमेरिका, ब्रिटेन, मेक्सिको, मलेशिया, थाइलैंड, दक्षिण अफ्रीका, जापान और भारत सहित दुनिया के 75 मुल्कों में है। विलियम पेन शीफर के सभी मैन्यूफैक्चरिंग, मार्केटिंग और रिटेलिंग कारोबार का अधिग्रहण करेगी। भारतीय कंपनी ने राइटिंग इंस्ट्रूमेंट के डिस्ट्रीब्यूटर और रिटेलर के तौर पर कारोबार शुरू किया था। AT क्रॉस कंपनी से शीफर को खरीदने का सौदा विलियम पेन को एक अलग मुकाम पर पहुंचा देगा। इस सौदे में शीफर ब्रांड के सभी प्रोडक्टों का पूरा पोर्टफोलियो शामिल है। इनमें प्रीमियम पेन, जर्नल, गिफ्ट सेट और लाइसेंस भी हैं।
विलियन पेन के संस्थापक और एमडी निखिल रंजन ने कहा कि शीफर का सौदा कई तरह से महत्वपूर्ण है। इससे कंपनी को अपनी पेशकश को बढ़ाने का मौका मिलेगा। भारतीय ग्राहकों के साथ विदेशी ग्राहकों के लिए कंपनी प्रोडक्टों की व्यापक रेंज पेश कर सकेगी। प्रीमियम पेन के कारोबार में अमेरिकी ब्रांड की हिस्सेदारी 15 फीसदी है। इनमें वे पेन भी आते हैं जिनकी कीमत 10 डॉलर यानी 790 रुपये से ज्यादा है। निखिल रंजन को उम्मीद है कि वह शीफर के लिए भारत को सबसे बड़ा मार्केट बना देंगे। इस सौदे के बाद उसके सालाना कारोबार में 30 फीसदी इजाफा होने के आसार हैं। अभी कंपनी का रेवेन्यू करीब 100 करोड़ रुपये का है।
20 साल पुरानी है विलियम पेन
विलियम पेन 20 साल पुरानी कंपनी है। 2002 में बेंगलुरु में निखिल रंजन ने इसकी शुरुआत की थी। यह पहली भारतीय कंपनियों में से एक थी जो एक छत के नीचे कई ग्लोबल पेन ब्रांडों को ले आई। इनमें मॉन्टब्लैंक, क्रॉस, शीफर, पेलिकन और सेलर जैसे नाम शामिल हैं। इसके उलट शीफर करीब 110 साल पुरानी है। 1907 में वॉल्टर शीफर ने इसकी नींव रखी थी। वॉल्टर शीफर एक ज्वेलर थे जिन्होंने फाउंटेन पेन में इंक-लोडिंग सिस्टम की खोज की थी।
ये देसी कंपनियां भी लगा चुकी हैं मुहर
किसी बड़े अमेरिकी ब्रांड के सौदे का यह पहला मामला नहीं है। इसके पहले भी देसी कंपनियां अमेरिकी ब्रांडों को खरीद चुकी हैं। 2006 में टाटा ने Eeight O'Clock Coffee का अधिग्रहण किया था। 2004 में भारतीय समूह ने टाइको ग्लोबल नेटवर्क और 2005 में आइकॉनिक होटल द पीयर को खरीदा था। वहीं, बिड़ला ने 2007 में एलुमिनियम कंपनी नोवेलिस का अधिग्रहण किया था। जीएचसीएल ने 2005 में टेक्सटाइल कंपनी डैन रिवर को अपने नाम किया था। आईटी दिग्गज टीसीएस, इन्फोसिस और विप्रो के अलावा जोमैटो और बायजूज जैसे स्टार्टअप भी अमेरिकी कंपनियों को खरीद चुके हैं।