भोपाल
राजभवन ने शहडोल विवि के कुलपति को नियुक्त कर नई परिपाटी शुरू कर दी है। नियुक्ति होने के बाद कुलपति को अपना दस्तावेजों का सत्यापन कराने के लिये पुलिस के चक्कर काटने होंगे। राजभवन ने सत्यापन के आदेश जारी कर अपनी ही कार्य व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिये हैं,क्योंकि कुलपति कोई नया व्यक्ति नहीं बल्कि दस साल प्रोफेसर का कार्य पूर्ण करने के बाद ही नियुक्त हो सकता है।
शहडोल में प्रो. रामशंकर कुलपति नियुक्त
राजभवन ने पं. शंभूनाथ शुक्ला विवि शहडोल में प्रो. रामशंकर को कुलपति नियुक्त किया है। उनकी नियुक्ति आदेश के साथ एक आदेश और दिया गया है। इसमें उनके पुलिस सत्यापन और अभिलेखों के सत्यापन कराने को कहा गया है। जबकि राजभवन कुलपति नियुक्त करने के लिये चार स्तर पर दस्तावेजों का सत्यापन कराता है। इसमें सबसे पहले राजभवन कार्यालय, सर्च कमेटी, सर्च कमेटी के साक्षात्कार और राज्यपाल से उम्मीदवार सीधे संवाद करते हैं। इसके बाद उनके नियुक्ति आदेश जारी किया गया है। नियुक्ति होने बाद कुलपति का पुलिस और अभिलेखों का सत्यापन हास्यपद है। राज्यपाल मंगुभाई पटेल द्वारा जारी किये गये नियुक्ति आदेश के बाद सत्यापन संबंधी आदेश राज्यपाल के प्रमुख सचिव द्वारा जारी किया गया है। इससे सभी विवि के कुलपति में उथल-पुथल मची हुई है। वे इसकी निंदा तक कर रहे हैं।
यहां फर्जी सर्टिफिकेट पर चर्चा तक नहीं
उच्च शिक्षा विभाग ने 27 जनवरी को प्रो. दिनेश कुमार शर्मा के खिलाफ फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट की जांच करने कमेटी गठित कर दी थी और अगले ही दिन राजभवन ने उन्हें महू विवि का कुलपति नियुक्त कर दिया। सात माह बीतने के बाद विभाग उनकी जांच पूर्ण नहीं करा पाया है। जानकारी के मुताबिक जिस डाक्टर ने प्रो. शर्मा को मेडिकल सर्टिफिकेट जारी किया था। वह काफी दिन पहले हमीदिया अस्पताल को छोड़ चुके थे।
लगातार दे रहे सेवाएं
यूजीसी के नियमानुसार दस साल प्रोफेसर रहने के बाद राजभवन उन्हें कुलपति के तौर पर नियुक्त कर सकता है। कुलपति बनने के लिये प्रोफेसर का एजीपी दस हजार होना अनिवार्य है। प्रोफेसर की नियुक्ति के समय उनका पुलिस और दस्तावेजों का सत्यापन कराना अनिवार्य है। इसके बाद अब उनका दोबारा से सत्यापन होना अन्य विवि के कुलपति ठीक नहीं बता रहे हैं।