क्या सच में 2024 में पीएम मोदी के खिलाफ विपक्ष का चेहरा बन पाएंगे नीतीश

पटना
जिस तरह से महाराष्ट्र और बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ उसके बाद देश की राजनीति में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है। महाराष्ट्र और बिहार दोनों प्रदेशों को मिला लिया जाए तो यहां से लोकसभा की कुल 88 सीटें हैं, लिहाजा यह भाजपा और अन्य विपक्षी दलों के लिए काफी अहम राज्य हैं। 2019 में जिस तरह से शिवसेना ने भाजपा के साथ गठबंधन को खत्म करके कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार का गठन किया उसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि प्रदेश की महाविकास अघाड़ी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएगी।
 
महाराष्ट्र-बिहार में बदलाव की राजनीति
गौर करने वाली बात है कि 2019 में शिवसेना और भाजपा के गठबंधन ने चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल किया था। बिहार में भाजपा, जदयू और एलजेपी ने लोकसभा की सभी सीटों पर क्लीनस्वीप किया था। वहीं महाराष्ट्र में भाजपा शिवसेना ने मिलकर लोकसभा की 41 सीटों पर जीत दर्ज की थी। जबकि विपक्ष महाराष्ट्र में सिर्फ 7 सीटों पर जीत दर्ज कर पाया था, जबकि बिहार में कांग्रेस को 1 और राजद को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी।
 
क्या नीतीश के अलग होने से बढ़ेगी भाजपा की मुश्किल
लेकिन हाल के बदले समीकरण के बाद स्थिति पूरी तरह से बदल गई है। नीतीश कुमार के पाला बदलने के बाद भाजपा के लिए मुश्किल थोड़ी जरूर बढ़ गई है। नीतीश के भाजपा से अलग होने के बाद यह संदेश जरूर गया है कि भाजपा का अब कोई दोस्त नहीं है और भाजपा अपने सहयोगी दलों को खत्म करना चाहती है। 2019 के बाद भाजपा के बड़े सहयोगी पंजाब में शिरोमणि अकाली दल, महाराष्ट्र में शिवसेना और बिहार में जदयू ने साथ छोड़ दिया है।
 
विपक्ष के सामने 2024 में एकजुट होने की चुनौती
हालांकि महाराष्ट्र और शिवसेना में बदले समीकरण के बाद विपक्ष अपने आप को मजबूत दिखाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इसके बाद भी सवाल खड़ा होता है कि क्या 2024 में भाजपा के खिलाफ विपक्ष एकजुट होकर सामने आ पाएगा और पीएम मोदी को चुनौती दे पाएगा। क्या विपक्ष किसी एक चेहरे पर मुहर लगा पाएगा, क्या नीतीश कुमार को विपक्ष अपना चेहरा बनाएगा जो नरेंद्र मोदी को चुनौती दे पाएं। बहरहाल यह देखना दिलचस्प होगा कि नीतीश विपक्ष को एकजुट करने में सफल होते हैं या विफल।
 
कई चेहरों के बीच जंग
केंद्र में भाजपा के बाद कांग्रेस को विकल्प के तौर पर देखा जाता है। लेकिन नेतृत्व के अभाव की वजह से कांग्रेस को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस पहले ही ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, के चंद्रशेखर राव, शरद पवार जैसे नेताओं को विपक्ष का चेहरा स्वीकार करने से इनकार कर चुकी है। लेकिन अहम बात यह है कि इन सभी नेताओं की अपने राज्य में लोकप्रियता कांग्रेस के कहीं ज्यादा है। यही वजह है कि कोई भी दूसरा नेता अपने से इतर दूसरे नेता के नेतृत्व को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।
 
क्या विपक्ष को चेहरे की जरूरत?
केंद्र में मोदी के उदय के बाद यूपीए, एनडी-1 में नए बदलाव देखने को मिले हैं। देश में राजनीतिक हालात 2004, 1996, 1989 से बिल्कुल अलग हैं। पूरे देश में अब भारतीय जनता पार्टी मुख्यधारा की राजनीति में है। जिस तरह से नरेंद्र मोदी सफलतापूर्वक अपनी राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं उसने देश के राजनीतिक समीकरण को पूरी तरह से बदल दिया है। विपक्ष में जो प्रभावी नेतृत्व हैं उनका मानना है कि एक चेहरे को आगे बढ़ाने और चुनाव पूर्ण गठबंधन से भाजपा को चुनौती दी जा सकती है। इनका मानना है कि मोदी के खिलाफ विपक्ष के पास कोई ऐसा चेहरा सामने नहीं आ रहा है जो पूरे देश में लोगों को अपनी ओर खींचे।

 

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