भोपाल
प्रदेश के करीब एक दर्जन इंजीनियरिंग कॉलेज आईपीएस (इंस्टीट्यूशन प्रिफरेंस फीस) कोटे की सीटों पर प्रवेश देंगे। सीएलसी के पहले इन सीटों पर एडमिशन दिए जाएंगे। बता दें कि विद्यार्थियों पर कम्प्यूटर साइंस (सीएस) का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है। लगातार छह सालों से कम्प्यूटर साइंस की सीटों पर विद्यार्थी बढ़-चढ़कर प्रवेश ले रहे हैं। सीएस ब्रांच की सीटों में इजाफा हुआ है। गत वर्ष सिर्फ सीएस करीब 252 सीटें थीं। वर्तमान में सभी कॉलेजों ने सीएसई के साथ डाटा साइंस, आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस एंड मशीन लर्निंग, साइबर सिक्योरिटी, बिजनिस सिस्टम और आईओटी ब्रांच को शामिल कर प्रवेश देने की व्यवस्था में लगे हुए हैं।
प्रदेश के एक दर्जन कॉलेज तकनीकी शिक्षा विभाग से 20-20 हजार रुपए देकर आईपीएस की सीटें लेंगे। एआईसीटीई और डीटीई की मंजूरी मिलने के बाद उक्त कॉलेजों की 500 सीटें मिलेंगी। उन्हें आठ ब्रांचों में सीएस की सबसे सर्वाधिक सीटें मिलेंगी। इसके बाद सिविल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इलेक्ट्रिकल, आईटी, मेकेनिकल, इलेक्ट्रनिक्स एंड कम्प्यूनिकेशन, फाइयर टेक एंड सेफ्टी की सीटें भी शामिल होंगी।
कमजोरों का सहारा बना आईपीएस …
आईपीएस सीटों पर कमजोर पढ़ाई वाले विद्यार्थी रुपए के दम पर प्रवेश लेते हैं। वे अपनी कमजोरी छिपाने के लिए ज्यादा फीस जमा कर जेईई मैंस की काउंसलिंग को दरकिनार कर देते हैं। आईपीएस फीस से योग्य विद्यार्थी का हक माना जा रहा है। अधिकारियों का कहना है कि आईपीएस में कॉलेज अपनी मनमर्जी करते हैं। ऐसे में सरकार का मैनेजमेंट कोटा बंद करना एक दिखावा लगता है।
यह है आईपीएस सिस्टम…
इंजीनियरिंग में मैनेजमेंट कोटा बंद हैं। पढ़ाई में कमजोर छात्रों को बेहतर कॉलेज में प्रवेश देने और उन्हें मजबूत करने शासन ने आईपीएस कोटा बनाया है। कॉलेजों को ब्रांच की कुल सीटों का दस फीसदी सीटों आईपीएस कोटे के तहत लेने का अधिकार है। उन्हें ये सीटों काउंसलिंग शुरु होने के पहले विभाग से लेना होती है।