पटना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने विपक्ष के लिए सशक्त चेहरे के तौर पर बिहार से नीतीश कुमार को सामने करने की कोशिशें तेज हो गई हैं। इस बारे में कुछ बातें घूमा-फिराकर, तो कुछ बातें खुले तौर पर राजनीति के गलियारे में आने लगी हैं। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के बयान के बाद बिहार-बंगाल और झारखंड में भाजपा विरोधी संभावित मोर्चे की अटकलें लगाई जाने लगी हैैं।
भाजपा को 40 सीटों का नुकसान पहुंचाने का कर रहे दावा
बिहार में बने नए गठजोड़ और आगे के लिए इनकी कोशिशों को देखते हुए नफा-नुकसान का आकलन किया जा रहा है। जदयू ने तीन राज्यों में कम से कम 40 सीटों की क्षति पहुंचाकर भाजपा को केंद्र की सत्ता से सफाए की बात कही है, किंतु यह तभी संभव होगा जब भाजपा के विरोध में सारे दल एकजुट हो जाएं। क्षेत्रीय टकराव, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा एवं छोटे-छोटे मुद्दों की अनदेखी करके ही भाजपा को चुनौती दी जा सकती है।
भाजपा और सहयोगियों के पास इस इलाके से 53 सीटें
लोकसभा चुनाव की ओर बढऩे से बहुत पहले बिहार में जदयू के गठबंधन बदलकर अपने विरोधी राजद के साथ हाथ मिलाने को ललन सिंह के बयान से जोड़कर देखा जा रहा है। ऐसे में उक्त तीनों राज्यों में कांग्रेस और वामदलों के साथ क्षेत्रीय पार्टियों की शक्ति और दुर्बलता की पड़ताल जरूरी है। तीनों राज्यों में लोकसभा की कुल 96 सीटें हैैं। इनमें भाजपा और उसके मित्र दलों के खाते में अभी 53 सीटें हैं।
गैर एनडीए दलों के पास तीन राज्यों की 43 सीटें
तृणमूल कांग्रेस, जदयू, कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) समेत अन्य दलों के पास 43 सीटें हैैं। इतना तो तय है कि भाजपा विरोधी दल अगर तीनों राज्यों में एकजुट होकर लड़े तो भाजपा की परेशानी बढ़ सकती है। किंतु सवाल है कि एकजुट होंगे कैसे। बिहार में जदयू-राजद की दोस्ती अगर टिकाऊ भी साबित हुई तो बंगाल में कम लफड़े नहीं होंगे।
ममता बनर्जी को वाम दलों के साथ लाना चुनौती
कांग्रेस और वामदलों से दोस्ती के लिए ममता बनर्जी को राजी करना इतना आसान भी नहीं होगा। बंगाल में वामदलों और कांग्रेस की राख पर ही ममता बनर्जी की राजनीति पनपी है। लोकसभा चुनाव में इसकी झलक भी दिखी थी। पराजय को सामने देखकर भी वामदलों ने तृणमूल के साथ गठबंधन के लिए तैयार नहीं हुए।
ममता से अधीर रंजन चौधरी की दुश्मनी जगजाहिर
इसी तरह कांग्रेस की राजनीति भी अलग-थलग चलती रही। बंगाल में कांग्रेस के दो सांसद हैैं। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी भी यहीं से जीतते हैैं। ममता के साथ उनकी दुश्मनी जगजाहिर है। भाजपा विरोध के नाम पर तीनों दलों को एक मंच पर लाने मेें अगर जदयू कामयाब हो गया तो यह नीतीश की बड़ी सफलता मानी जाएगी।
झारखंड में लोस की 14 में से 11 सीटों पर भाजपा का कब्जा
झारखंड में लोकसभा की 14 सीटों में से 11 पर भाजपा का कब्जा है। एक सीट सहयोगी दल आजसू की झोली में है। शेष दो सीटों में झामुमो और कांग्रेस के सांसद हैैं। झामुमो और कांग्रेस मिलकर सरकार चला रहे हैैं, लेकिन खटपट होते रहती है। राष्ट्रपति चुनाव में झामुमो ने कांग्रेस की लाइन से हटकर भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में वोट कर दिया था।
नीतीश कुमार ने पहले ही झारखंड पर गड़ा रखी है नजर
झारखंड पर नीतीश की नजर पहले से है। जदयू ने हाल ही में खीरू महतो को राज्यसभा भेजकर राजनीतिक तमन्ना का संकेत जरूर दे दिया है, लेकिन भाजपा ने भी अपने पुराने नेता बाबूलाल मरांडी की वापसी कराकर आदिवासी वोट बैैंक को मजबूत करने का प्रयास किया है।
झारखंड में भाजपा को मिले थे 51 प्रतिशत वोट
झारखंड में भाजपा को 51 प्रतिशत वोट आया था और 14 में से 11 सीटें मिली थीं। झामुमो को 11 प्रतिशत और कांग्रेस को 15.63 प्रतिशत वोट के साथ एक-एक सीट मिली थी। शेष किसी दल का खाता भी नहीं खुल पाया था। भाजपा को यह कामयाबी तब मिली थी, जब बाबूलाल मरांडी अलग थे।
बाबू लाल मरांडी के साथ आने का मिलेगा फायदा
बाबू लाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा को भी प्रत्येक चुनाव में 10-12 प्रतिशत वोट मिलता रहा है। अब मरांडी भाजपा के साथ हैैं। ऐसे में माना जा रहा कि भाजपा को वोट प्रतिशत बढ़ सकता है। किंतु लालू प्रसाद का भी झारखंड में अपना आधार है। नीतीश कुमार अगर सक्रिय हो गए तो तस्वीर पलट सकती है।
बंगाल में भाजपा और तृणमूल के बीच हुई थी सीधी लड़ाई
बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैैं। भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के साथ सीधी लड़ाई में 40 सीटें बंट गई थीं। कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं। वामदलों का गढ़ माने जाने वाले बंगाल में सभी दलों का सुपड़ा साफ हो गया था। वामदल का खाता भी नहीं खुला था। भाजपा को 40 प्रतिशत वोट और 18 सीटें मिली थीं, जबकि तृणमूल ने 43 प्रतिशत वोट के साथ 22 सीटें जीती थीं। वामदलों को तो सात प्रतिशत वोट भी नहीं मिल पाए थे। बंगाल में भाजपा और तृणमूल को छोड़कर बाकी सभी दलों का वोट प्रतिशत लगातार गिर रहा है।