मोतिहारी (पूर्वी चंपारण)
15 अगस्त की सुबह और दिनों की अपेक्षा अलग थी। स्वतंत्र भारत में निकले सूर्य की किरणें अहिंसा को कामयाब विचार के रूप में रोपने की धरा चंपारण को बारंबार नमन कर रही थीं। पुरवा हवा में स्वाधीनता की सुगंध थी तो गांव से शहर तक उल्लास। चौक-चौराहों पर जलेबी छन रही थी तो गुलगुले भी बन रहे थे। घर-घर खीर, खुरमा और गुड़ का रसियाव बन रही थी। पकड़ीदयाल के चैता निवासी स्वतंत्रता सेनानी जयमंगल सिंह के पोते गांधी स्मारक व संग्रहालय, मोतिहारी के सचिव ब्रजकिशोर सिंह को वो दृश्य याद है, जब देश ने स्वाधीनता का बिहान देखा था।
14 अगस्त की रात उतरने लगा था अंग्रेजी झंडा
दादा की आंखों से आजादी की उत्कंठा में सर्वस्व उत्सर्ग कर देने के दृश्यों को देखने वाले 92 वर्षीय ब्रजकिशोर सिंह कहते हैं कि 15 अगस्त, 1947 को जिला मुख्यालय के भवानीपुर जिरात स्थित अपने घर पर था। उम्र 17 साल रही होगी। जिला स्कूल में पढ़ता था। 14 अगस्त की रात सरकारी कार्यालयों से अंग्रेजी झंडा उतरने लगा था। बाबा ने हमें पहले ही बता दिया था कि 15 को देश आजाद हो जाएगा। सुबह होने की बेसब्री में 14 को हमलोग देर रात तक जगे रहे। जिला स्कूल के सहपाठियों के साथ आजादी का जश्न मनाने की तैयारी की थी।
उत्साह से लबरेज थे लोग
15 अगस्त की सुबह सड़कों पर खास हलचल तो नहीं दिखी, मगर दिन चढ़ते ही छोटी-छोटी टुकड़ियाें में उत्साह से लबरेज तिरंगे लिए लोग भारत माता का जयघोष किए जा रहे थे। इसके बाद चौक-चौराहों पर मजमा लगना शुरू हो गया था। जलेबी और बुनिया दनादन बिक रही थी।
मिल्टन पार्क में फहराया गया था तिरंगा
साफ-सुथरे कपड़े पहन साथी विश्वनाथ साह और ईश्वरी प्रसाद साहू के साथ जिला स्कूल पहुंच गए। सहपाठी भी जुट रहे थे। वहां से हम सभी भारत माता की जय और वंदे मातरम् का उद्घोष करते मिल्टन पार्क (अब सुभाष पार्क) पहुंचे। वहीं पर हमारे बाबाजी भी सैकड़ों लोगों के साथ साइकिल में तिरंगा बांधे पहुंचे थे। वहां तिरंगा फहराया गया। लोगों के बीच तोड़-तोड़कर लड्डू बांटे गए। संघर्ष के किस्से-कहानी कहे-सुने जा रहे थे। दो-तीन घंटा रुकने के बाद सभी लोग प्रजापति आश्रम गए। वहां भी झंडा फहराया गया।